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गुनाहों का देवता

भाग-२

"अबकी जाड़े में तुम्हारा ब्याह होगा तो आखिर हम लोग नयी-नयी चीज का इन्तजाम करें

न अब डॉक्टर हुए, अब डॉक्टरनी आएँगी!" सुधा बोली। खैर, बहुत मनाने बहला-फुसलाने पर सुधा मिठाई मंगवाने को राजी हुई। जब नौकर मिठाई

लेने चला गया तो चन्दर ने चारों ओर देखकर पूछा, "कहाँ गयी बिनती उसे भी बुलाओ कि अकेले- अकेले खा लोगी!"

"वह पढ़ रही है मास्टर साहब से।"

"क्यों? इम्तहान तो खत्म हो गया. अब क्या पढ़ रही है? चन्दर ने पूछा। "विदुषी का दूसरा खण्ड तो दे रही है न सितम्बर में!" सुधा बोली।

"अच्छा, बुलाओ बिसरिया को भी!" चन्दर बोला।

"अच्छा, मिठाई आने दो।" सुधा ने कहा और फाइल की और देखकर कहा, "मुझे इस कम्बख्त

पर बहुत गुस्सा आ रहा है। "

"क्यों?" "इसकी वजह से तुम डेढ़ महीने सीधे से बोले तक नहीं। इम्तहान वाले दिन सुबह-सुबह तुम्हें

हाथ जोड़ने आयी तो तुमने सिर पर हाथ भी नहीं रखा!" सुधा ने शिकायत के स्वर में कहा। "तो अब आशीर्वाद दे दें। अब तो खत्म हुई थीसिस अब जितना चाहो बात कर लो। थीसिस न लिखते तो फिर तुम्हारे चन्दर को उपाधि कहाँ से मिलती ?" चन्दर ने दुलार से कहा। "तो फिर कन्वोकेशन पर तुम्हारी गाउन हम पहनकर फोटो खिंचाएँगे! सुधा मचलकर बोली ।

इतने में नौकर मिठाई ले आया। 'जाओ, बिनतीजी को बुला लाओ।" चन्दर ने कहा ।

बिनती आयी।

"तुम पढ़ चुकी!" चन्दर ने पूछा। "अभी नहीं।" बिनती बोली।

"अच्छा, अब आज पढ़ाई बन्द करो उन्हें भी बुला लाओ। मिठाई खाई जाए।" चन्दर ने कहा। "अच्छा" कहकर बिनती जो मुझी तो सुधा बोली, "अरे लालचिना ये तो पूछ ले कि मिठाई काहे

की है।"

"मुझे मालूम है।" बिनती मुसकराती हुई बोली, "उनके यहाँ आज गये होंगे, पम्मी के यहाँ फिर आज कुछ उस दिन जैसी बात हुई होगी।"

सुधा हँस पड़ी। चन्दर झेंप गया। बिनती चली गयी बिसरिया को बुलाने ।

"अब तो ये तुमसे बोलने लगी!" सुधा ने कहा ।

हाँ यह है बड़ी सुशील लड़की और बहुत शान्त हमें बहुत अच्छी लगती है। बोलना तो जैसे

आता ही नहीं इसे ।"

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