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नियम-20




*जय श्री जाम्भाणी 29 नियम नवण प्रणाम*
आज जेठ बदी चवदस (चतुर्दशी) विक्रमी सम्वत् 2080 गुरुवार तदनुसार 18मई, 2023 को सदगुरु श्रीविष्णु अवतार जम्भेश्वर भगवान द्वारा वृक्षों को भी सजीव प्राणी मानकर वन्य सम्पदा (वन एवं वन्य प्राणी) की  रक्षा-सुरक्षा कर हर प्राणी के कल्याणार्थ पर्यावरण संतुलन हेतु अधिक से अधिक वृक्ष लगाने, उनका पालन-पोषण करने तथा उनकी रक्षा कर युक्तियुक्त जीवन जीने अर आत्मशुद्धि हेतु हमें

*जाम्भाणी 29 नियम नंबर 20 दिया है*

सदगुरु श्रीविष्णु अवतार जम्भेश्वर भगवान द्वारा वन रक्षा-सुरक्षा अर  स्वच्छ प्राणवायु हेतु हमें *हरे वृक्ष काटना तो दूर उन्हें घाव तक भी न देंने का नियम पालन का आदेश दिया है।*
 जीवन को स्वस्थ अर निष्पाप बनाये रखने, स्वच्छ प्राणवायु में साँस लेने हेतु मन, कर्म अर वचन से सदा वृक्षों की रक्षा करने की आज्ञा दी है। श्रीविष्णु कृपा पाने मूक पादप प्राणी वृक्ष पर दया व्रत रूपी तप 20वाँ नियम दिया है। वर्तमान में निज लालच में इन्सान अन्धाधुन्ध पेड़ो को काट अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मार रहा है। तभी तो कवि की पंक्तियां किः
*अरे इन्सान ना कर पेड़ नष्ट*
*तुझे साँसे लेने में होगा कष्ट*
 यह नियम एक महान व्रत भी है और तप भी है। श्रीविष्णु कृपा उन्हीं को मिलती है जो वृक्षरूपी जीवों पर नित्य दया भाव रखता है। सदगुरु श्री जम्भेश्वर भगवान ने श्रीजम्भवाणी के सबद संख्या 29 में कहा हैः
*मोरै धरती ध्यान वनस्पति वासो, ओजू मण्डल छायों।।* भावार्थः सम्पूर्ण ब्रह्मांड मेरे ध्यान में है और वनस्पति में मेरा निवास है। मैं ओजोन पर्त तक छाया हुआ हूँ। जिस वनस्पति में स्वयं परमपिता परमात्मा का निवास है, इन्सान निज लालच में उसी वनस्पति को धड़ाधड़ नष्ट करने पर तुला हुआ है।
*रूँख लीलो नहीं घावै* नंबर 20 नियम एक तपस्या ही नहीं एक सामाजिक संस्कार भी है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महान विरासत का रूप है। इन 29 नियमों से जुड़ा व्यक्ति अपने संस्कार और संस्कृति का रक्षक भी है और संवाहक भी है, जो आने वाली पीढियों को आगे से आगे नियम संप्रेषित करता है अर प्रचार-प्रसार करता है। परमपिता परमेश्वर श्रीविष्णु का एकाग्रचित्त ध्यान अर हरे वृक्षों की सुरक्षा करनी बहुत जरूरी है।
वन अर वन्यजीवों पर दया करते हुए वृक्षारोपण और उनका पालन पोषण करना हमारा परम कर्तव्य बनता है। सभी वृक्षों को अपने अपने कर्मानुसार जीने दें और वे भी हमारी तरह ईश्वरीय संतान हैं। इसीलिए उनके जीवन जीने में हम सभी को सार्थक सहयोग देना चाहिए न कि उनके जीवन को समाप्त करके स्वकीय लालचपूर्ति करें या उनके जीवनयापन में बाधा उत्पन्न करें जो ठीक नहीं है। जीओ और जीने दो यह एक सिद्धांत बहुत हद तक ठीक है किन्तु वृक्षारोपण, पालन और संरक्षण के मुकाबले में काफी बौना पड़ जाता है। स्वयं भी जीवें और दूसरे को किसी भी तरह सताना या मारना नहीं चाहिए। इससे आप किसी को पेड़ काटते हुए को न रोक सकते हो और न छूड़ा नहीं सकेंगे तथा न ही पालन-पोषण ही कर सकोगे किन्तु वृक्षारोपण अर पालन में तो न आप स्वयं ही किसी पेड़ को काटेंगे और न ही किसी को काटने देंगे। इसीलिए यह सिद्धांत गुरूत्तर है, बहुत बड़ा है। इसी सिद्धांत के पालन करने की सदगुरु श्री जम्भेश्वरजी भगवान ने आज्ञा दे रखी है 
उनके शिष्य शिरोमणि बिश्नोईजन पालन करते भी आए हैं तथा अद्यपर्यंत कर रहे हैं और करते ही रहेंगे। 
यही नहीं वृक्षों की रक्षार्थ कर्मा अर गोरां दो रिवासड़ी, मोटो, खिवणी अर नेतू नेण सहित सात तिलासणी, बूचोजी एचरा, एक पोलावास और माँ अमृता देवी की अगुवाई में 363 स्त्री-पुरुषों अर बच्चों ने खेजड़ली में खेजड़ी वृक्षों को बचाने के लिये अपने प्राण न्योछावर कर दिये मगर वृक्ष नहीं काटने दिये। इस नियम के कारण ही आज भी बिश्नोईयों के गाँवों में वृक्षों और वन्य जीवों की रक्षा के कारण वृक्ष बहुत है और वन्य जीव निर्भय से विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। 
प्राचीन समय से ही ताम्र-पत्र राजाओं ने लिखकर दिये थे तथा अब भी सरकार को इस नियम पालन करने को मजबूर किया है। 
*।। अहिंसा परमो धर्म:।।* अहिंसा ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है और हिंसा ही सर्वअधर्म पाप है। आप किसी को जीवन दे नहीं सकते, तो फिर लेने का क्या अधिकार है। जीव हिंसा अनाधिकार चेष्टा है।  आधुनिकयुग के बुद्धिमान लोग भी जीव हिंसा (जीवहत्या) का विरोध करते हैं। इनसे होने वाला पाप असीम होता है। पलभर इन वृक्ष हत्याओं को पाप न भी मानें तो भी शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक कष्ट तो अवश्य होते ही है। इस मानसिक संत्रास से बचने के लिए सदा वृक्षों की रक्षा करते हुए उनका पालन- पोषण करना चाहिए।
यही कारण है की मानसिक अर शारीरिक स्वस्थ सुखी रहके युक्ति मुक्ति चाहने वाले सज्जनों को नित श्रीविष्णु का ध्यान और जीव रक्षा हरसंभव करें। इससे जहाँ मानसिक सुख शांति स्वास्थ्य समृद्धि कायम रहेगी। मन, कर्म वचन से धर्म स्नान, ध्यान मन की शांति मिलेगी। सदगुरु श्री जम्भेश्वर जी पदत्त नियम संख्या 19 में कहा गया है कि *जीवदय पालणी यानि जीवों पर दया भाव रखकर उनका पालण पोषण भी करें।* नियम नित्य पालनीय और अति आवश्यक है।
*जाम्भाणी साहित्य से संदर्भित*
©®  
*कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई*
राष्ट्रीय सचिव, जेएसए, बीकानेर,
लेखक, पत्रकार, साहित्यकार,
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी-प्रवक्ता अखिल भारतीय 
जीवरक्षा बिश्नोई सभा, अबोहर, हॉउस नं. 313, 
सेक्टर 14 (श्री ओ३म विष्णु निवास) 
हिसार (हरियाणा)-125001 भारत
फोन नंबर-9518139200,
व्हाट्सएप-९४६७६९४०२९




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3 Comments

Sachin dev

18-May-2023 09:28 PM

Well done

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Madhumita

18-May-2023 06:20 PM

Nice 👍🏼

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वानी

18-May-2023 05:53 PM

Nice

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