लाइब्रेरी में जोड़ें

नियम-7




*जय श्री जाम्भाणी 29 नियम नवण प्रणाम*
आज बैशाख सुदी ग्यारस विक्रमी सम्वत् 2080 सोमवार तदनुसार एक मई (मई दिवस) 2023 को 

*नियम 7ः दोनों काल संध्या*
  
सदगुरु श्रीविष्णु अवतार जम्भेश्वर भगवान द्वारा जन कल्याणकारी 
सातवाँ नियमः *दोनों काल संध्या* करने का दिया जो एक प्रकार का व्रत (प्रण) है। यह 29 नियमों में से एक है। 
*दोनों काल संध्या* का अभिप्राय हैः प्रातः अर सायं काल सदा ही ध्यान पूर्वक दोनों काल संध्या की ओर बना रहे तथा शुद्धता और मन विकार रहित रखने को प्रयासरत रहें। शरीर की शुद्धि तो मिट्टी जल से होती है और मन और बुद्धि की शुद्धि अच्छे विचारों से, संध्या-वन्दन अर भगवान श्रीविष्णु के भजन करने से तथा सत्य बोलने आदि से होती है। इस प्रकार की शुद्धता हेतु नित प्रयत्नशील रहें।प्रातःकाल सूर्योदय तथा सांयकाल सूर्यास्त समय को संध्या समय कहते हैं। उस समय रात्रि तथा दिन की संधी वेला होती है। प्रातः काल की संधी वेला में तो रात्रि की समाप्ति तथा दिन का आगमन होता है तथा सायं समय तो दिन की विदाई और रात्रि का आगमन होता है। ऐसी वेलाही पवित्र मानी जाती है क्योंकि यह बेला हमें प्रातःकालीन जीवन यानी मानव शरीर प्राप्ति कर कर्तव्य पालन का संकेत देता है। वैसे कई साहित्य में त्रिकाल संध्या भी प्रमाणित है। जैसे कि दोपहर का समय प्रातः र सायं की संधि-वेला कहाती है। दोपहर जवानी और सायं वृद्धावस्था के बीच की संधि होती है जो मृत्यु का प्रतीक होती है। इसी प्रकार दूसरे दिन प्रातः पुनः नया जीवन प्राप्ति का संकेत देती है। प्रातःकाल सूर्योदय वेला में संध्या करके हम दिन के कार्य प्रारम्भ करने चाहिए। सांयकाल सूर्यास्त के समय अपना दिन का कार्य निपटाकर पुनः परमात्मा की प्रार्थना रूपी संध्या करके विश्राम करना चाहिए। श्रीजम्भवाणी में कहा भी हैः
*‘ताती बेला ताव न जाग्यो, ठाडी बेला ठारूं, बिम्बे*
*बैला विष्णुन जंप्यो, तातै बहुत भयी कसवारूं*।
संध्या उपासना तो वैदिक काल से ही परम्परागत चली आ रही है क्योंकि यह एक अति सुन्दर अर कल्याणकारी परंपरा थी, जिसकी रक्षा कर संजोये रखकर आने वाली नई पीढियों को सौंपना परमावश्यक है। यही कारण है सदगुरु देव श्रीविष्णु जम्भेश्वर जी ने 29नियमों में एक नियम यह बतलाया है। प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठकर घूम-फीर फ्रैस हो कर्ला दान्तुन करके स्नान कर संध्या करनी चाहिए। सायंकाल सूर्यास्त के समय में हाथ-पांव अर मुँह धो कर अथवा स्नान करके उतर या पूर्व की ओर मुख करके एकान्त शुद्धस्थान पर निज आसन लगा कर ईश्वरीय ध्यान में मग्न होकर बैठें। आवश्यकतानुसार हाथ में माला लेकर या बिना माला भी परमात्मा श्रीविष्णु को हृदय में धारण कर मुख से ‘विष्णु-विष्णु’ या "विसन-विसन" इस महामंत्र का जाप करें। ‘यज्जपस्तदर्थ भावनम्’ जो भी जप किया जाये वैसी मानसिक भावना अर्थात् उसी तरह ध्यान भी करना चाहिये। ध्यानपूर्वक प्रेमभाव से लिया हुआ परमात्मा का नाम ही अनन्त गुणा फल देने वाला बन जाता है। परमपिता परमात्मा श्री विष्णु की महिमा स्मरण के लिए सर्वश्रेष्ठ अर युक्ति मुक्ति देने वाला होता है। परमात्मा श्रीविष्णु की महिमा श्रद्धा, संध्या वन्दन स्मरण परमात्मा के श्रद्धा से समर्पित होन के लिए *वृहन्नवण संध्या मंत्र* का पाठ अवश्य ही करना चाहिये। ऐसी हमारी परम्परा अर विधान है। ये सातवाँ नियम जरूर नित्यप्रति पालन करें। समय यदि ज्यादा नहीं दे सकते तो भी छोड़ना नहीं चाहिये। नियम का मतलब ही यही होता है कि नियमित रूप और अबाध गति से संध्या-स्मरण हरहाल में चलता ही रहे। बीच में न ध्यान टूटे न हीं स्मरण रूके। यही नियम की सार्थकता है। अतः मानसिक अर शारीरिक सुख शांति चाहने वाले सभी सज्जनों के लिए ये भावप्रधान नियम सात संध्या पालनीय है।
*जाम्भाणी साहित्य से संदर्भित*
©®  
*कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल बिश्नोई*
राष्ट्रीय सचिव, जेएसए, बीकानेर,
लेखक, पत्रकार, साहित्यकार,
राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी-प्रवक्ता अखिल भारतीय 
जीवरक्षा बिश्नोई सभा, अबोहर, हॉउस नं. 313, 
सेक्टर 14 (श्री ओ३म विष्णु निवास) 
हिसार (हरियाणा)-125001 भारत
फोन नंबर-9518139200,
व्हाट्सएप-९४६७६९४०२९



   8
0 Comments