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स्वर्णमुखी




स्वर्णमुखी--


तुम मेरे हाथों की रेखा।

एक तुम्हीं मेरी किस्मत में।

तुम्हीं चमकते हो अस्मत में।

मधु जीवन के लेखा-जोखा।


नाम एक है रूप एक है।

हम दोनों अष्टांग योग हैं।

प्रेम -पृष्ठ पर सत्य भोग हैं।

जाड़ा-वर्षा-धूप एक है।


हम दोनों अद्वैत दृश्य हैं।

निराकार-साकार उभय हैं।

सदा निराला प्रेम अभय हैं।

सकल लोक में श्वेत स्पृश्य हैं।


प्रीति-प्रेम को दिनकर जानो।

तेजपुंज प्रिय शिवकर मानो।।




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2 Comments

Gunjan Kamal

09-Apr-2023 09:06 PM

बहुत खूब

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