अभिमन्यु
ले रुद्र धनुष धर रौद्र रूप,
कौरव सेना का काल बना,
सब छिन व्यूह रचना होती,
रोके न रुके यह महारथी,
मन ही मन प्रशंसा करते है,
गुरु द्रोण से अदिरथी,
पर चक्रव्यूह का मर्म सही ,
जाने नन्हा सा वह बालक,,
आगे बढ़ना था एक विकल्प,
पीछे मुड़ना न था सम्भव,,
कर निश्चय वीर बढ़ा आगे,
नियति को पौरुष दिखलाने,,
यह विजय श्री छणभंगुर है,
वह चला मनुज को बतलाने,,
याद करे सदिया जिस को ,
वह शौर्य महि पर दिखलाने,,
चले शराशन से शर सनसन,
वीर नहीं रुकने है बाला,
हो प्रसन्न रण नत्य करे है,
काल रूप डमरू बाला,,
जो बाज उड़े है अम्बर मे,
रणवीर विचरता है रण मे,
धर पलय रूप है अभिमन्यु,
बढ़ चला समर के अन्तस मे,
रह गए सभी प्रथम तट पर,
पीछे छूट सब महारथी,,
हर द्वार भेदता चला रथी,
मन ही मन जाने सभी गती,
रणचंडी का कर आवाहन,
बढ़ करे मृत्यु का आज वरण,,
इतिहास रखेगा याद जिसे,
दिखलाता ऐसा भीषण रण,
गरज रहा रण मे ऐसे वह ,
जैसे वन सिंह गरजता है,,
अभिमन्यु के प्रहारो से,
हर ओर ही काल विचरता है,,
आलौक सूर्य का मस्तक पर,
अधर पे है मुस्कान सजी,,
नहीं जीत सका कोई रण मे,
हारे है सारे महारथी ,,
कौरव दल विचलित होता है
इस महावीर के वारो से,,
है दसो दिशाए कम्प्यमान ,
हो रही वीर के भुजबल से,,
चीखा विचलत हो दुर्योधन,
सब मिलकर इस वार करो,,
जैसे भी सम्भव हो तुम से,
इस योद्धा का संघार करो,,
शर मार कर्ण भी हार गया,
शर मार द्रोण भी हारे है,
था शिष्य कृष्ण का परम वीर,
मृत्यु भी पास नहीं आती ,
हो रथ विहीन हो शस्त्र विहीन ,
फिर भी है हार नहीं मानी,
उठा लिया रथ का पहिया,
लड़ रहा समर मे महावीर,
हर ओर से वार हुए देखो,,
है मर्यादाए छिनभिन,
मिल टूट पड़े है निहथे पर,,
हाय ये है कैसा रण,
कर के समर मे अथक द्वंद ,,
थक हार गिरा वह वीर भूमि पर ,
वीरगति को पाता है,
श्री कर मलिन शत्रु की वह,
वीर जगत से जाता है,,
Gopal Gupta "Gopal "
madhura
31-May-2023 04:08 PM
nice
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sunanda
26-Mar-2023 12:02 PM
nice
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डॉ. रामबली मिश्र
15-Mar-2023 05:48 PM
बहुत खूब
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