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स्वर्णमुखी




स्वर्णमुखी (सॉनेट)


कर्मठ मानव सदा धनी बन,बढ़त अग्र की ओर।

मस्तक पर है तेज, अर्थ पसीना बन कर बहता।

सतत कर्म की पूजा करता, पकड़ कर्म की डोर।

श्रम ही केवल साध्य, श्रमिक बना वह चलता रहता।

श्रम का करता दान सदा है, श्रम में ही सम्मान।

करता रहता काम, कभी नहीं वह श्रम से डरता।

कर्मवीर सा कर्म पंथ पर, दिखता बहुत महान।

देता सबको ज्ञान, श्रमशिक्षक बन दुख को हरता। 

श्रम ही उसका सच्चा ईश्वर, श्रम में उसका प्राण।

श्रम पर केवल ध्यान, श्रम की करता सदा बड़ाई।

सदा खोजता श्रम में जीवन, श्रम से ही कल्याण।

श्रम का जानत मूल्य, श्रम की करता नित्य पढ़ाई।


सत्य परिश्रम से मिलता है, प्रिय लक्ष्मी का धाम।

श्रम को जिसने गले लगाया, हुआ उसी का नाम।




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5 Comments

अदिति झा

03-Feb-2023 11:33 AM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

02-Feb-2023 11:25 AM

बहुत खूब

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बेहतरीन

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