251 भाग
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डॉ०रामबली मिश्र विरचित वर्णिक चतुष्पदी कहते रहना शिवराम हरे। जपते बढ़ना घनश्याम घरे। प्रभु से मन से नित प्यार करो। उनसे सबका घर-द्वार भरे। तन धन्य वही जपता हरि को। मन ...