समर्पण

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समर्पण आज कहती एक नारी दूजी से बहुत हुआ त्याग समर्पण भाव हमारा तुम्हारा,  सहज सरल स्वभाव को समझ रहा कमजोरी ये जमाना,  उठो जागो बहुत हुआ भीतर ललक जगाओ,  बुनी ...

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