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मिसिर की कुण्डलिया मानव बनने की ललक, जिसमें है भरपूर। वह दुष्कृत्यों से सदा ,रहता है अति दूर।। रहता है अति दूर, सदा अपना मुँह फेरत। सत्कर्मों के संग,स्वयं की नैया ...