यह पागल दिल

80 भाग

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कविता यह पागल दिल राजीव कुमार झा कितना आवारा होता  रोज चांद के पास  सदा यह सोता  सुबह पहर यह  जब मीठी नींद से जगता आंगन में सूरज की नयी नवेली ...

अध्याय

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