हरिहरपुरी की कुण्डलिया

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हरिहरपुरी की कुण्डलिया तरसो मत हर्षो सदा , कम हो अथवा ढेर। प्रेमाकुल हो नृत्य कर,बन कर प्रेम-कुबेर।। बन कर प्रेम -कुबेर, प्रेम-धन सबको बाँटो। यह अमृत सिद्धांत, इसी से जीवन ...

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