हरिहरपुरी की कुण्डलिया

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हरिहरपुरी की कुण्डलिया पारस बन कंचन करो, हर मानव का देह। स्वर्णमुखी जैसा दिखे, हर मानव का गेह।। हर मानव का गेह,बने अति स्वर्गिक प्यारा। सकल प्राणि में प्रेम, बने गंगा ...

अध्याय

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