पनाहों के तलबगार हम

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बिखरे हुए से अकेले हम इस स्याह रात के काले अंधेरे में बैठे थे ना जाने कब से पता नहीं किस के इंतजार में बस यूं ही बेवजह काट रहे थे ...

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