1 भाग
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विषय:--" पथ " जीवन सहारा मरूथल नीरस सा, मैं इस भ्रम में, छला जा रहा हूं। न पथ का पता, न गंतव्य निश्चित, सर झुकाए हुए, चला जा रहा हूं।। **महेन्द्र ...