कबीर दास जी के दोहे

255 भाग

53 बार पढा गया

1 पसंद किया गया

प्रेम न बड़ी उपजी, प्रेम न हात बिकाय राजा , प्रजा, जोही रुचे, शीश दी ले जाय।।  ...

अध्याय

×