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हरिहरपुरी की कुण्डलिया डरना सदा कुकृत्य से, खुद को सदा सुधार। रखना अपने हृदय में, पावन मधुर विचार।। पावन मधुर विचार, मारता कलुषित भावन। भरने को तैयार, हृदय में नित सद्भावन।। ...