मिसिर जी की कुण्डलिया

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मिसिर बाबा की कुण्डलिया धरती को है चूमता, ऊपर से आकाश। यह समाज की रीति हो, मिले बड़ों से आस।। मिले बड़ों से आस, बने समरस मानवता। कटे द्वेष का भाव, ...

अध्याय

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