मिसिर महराज की कुण्डलिया

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मिसिर कविराय की कुण्डलिया रचना कर सद्भाव का, उठती रहे तरंग। प्रेम रंग की लहर बन, रचे विश्व का अंग।। रचे विश्व का अंग, बने हर मन अनुरागी। चलें सभी इक ...

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