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डॉ०रामबली मिश्र की कुण्डलिया प्रियता में है रस भरा, कर मधुमय संवाद। निर्विवाद हो जगत में, चल बन कर आजाद।। चल बन कर आजाद,प्रेम से सब से बोलो। बरसे रसमय मेह, ...