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मिसिर बलिराम की कुण्डलिया देना सीखो प्रेम को, यह अक्षुण्ण भंडार। तिल भर घटता यह नहीं, सतत एक रस धार।। सतत एक रस धार, गिरे यह सब के उर में। पी ...