हरिहरपुरी की कुण्डलिया

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हरिहरपुरी की कुण्डलिया दाता जो अभिमान बिन, देता रहता दान। आजीवन पाता वही,यश-वैभव-सम्मान।। यश-वैभव-सम्मान, बहुत हैं दुर्लभ जग में। करते सदा निवास, सदा दाता के रग में।। कहें मिसिर कविराय, जगत ...

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