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डॉ०रामबली मिश्र की कुण्डलिया पाना जो था लोक में, उसे गया अब पाय। अब तो प्रभु दीदार की,चाहत बहुत सुहाय।। चाहत बहुत सुहाय, ईश में मन लग जाये। रहे ध्यान दिन-रैन, ...