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हरिहरपुरी की कुण्डलिया राखी राखी है नहीं, समझो इसे प्रसाद। संतों के कर से मिली, हर लेती अवसाद।। हर लेती अवसाद, होय तन मन उर चंगा। बहाती अमृत धार,हृदय में बनकर ...