281 भाग
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मिश्रा कविराय की कुण्डलिया राजा हो या रंक हो, सब का इक गन्तव्य। सब को मरना एक दिन, यही सत्य मन्तव्य।। यही सत्य मन्तव्य, जगत में किस्मत भारी। अपना -अपना भाग,नियति ...