बेइंतहा

1 भाग

131 बार पढा गया

6 पसंद किया गया

थी बेइंतहा चाहत मेरी बस एक तेरे लिए थी तुझे पाने की हसरत अपनी हर खुशी से बढ़कर सोचते थे बस तुझे ही हर पल बेइंतहा सजता था तू ख्वाब बनकर ...

×