कविता ःःबाढ़

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कविता ःःबाढ़ ★★★★★★ नदियों का शोर बढ़ता गया जल न जाने कैसे इनमें बढ़ता गया किनारे डूबे ओर इनका गुम होता गया नदियां उफनती रहीं, कारवां उजड़ता रहा नदियों का जल ...

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