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विषय:-- स्वैच्छिक आखिरकार टूट ही गया विश्वास उन टेढ़ी-मेंढ़ी राहों का जिस पर पड़ते थे पैर रोज एक-दो नहीं बल्कि अनगिनत रास्ते पीड़ित थे खुद की पीड़ा से द्रवित थे स्वयं ...