फ़ैज अहमद फ़ैज--(मुझसे पहली सी मौहब्बत मेरे महबूब ना माँग)

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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है तेरी सूरत ...

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