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धूमकेतु के ऐसे आचरण से शाकंभरी विक्षिप्त हो चुकी थी,उसे स्वयं से घृणा हो रही थी,उसे अब अपने भ्राता पुष्पराज की प्रतीक्षा थी कि वो शीघ्र ही राजमहल आकर उसे बंदीगृह ...