कर लीजे स्वीकार

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दोहा कजरी गातीं गोरियां, होते आल्हा छंद। गावों से बढ़ कर कहां, सावन का आनंद।। तन पर सबके सज गये, हैं नूतन परिधान। हर घर में पकने लगे, मेवा और मिष्ठान।। ...

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