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कविता--रोटी की कीमत ठिठकी, गले में अटकी वह बूढ़ा कुलबुला रहा था सर्द रातों में कुहासों के साथ ठिठुरते अपनी धुंधली आँखों से उम्मीद के पल निहार रहा था उसे अब ...