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कविता---प्रार्थना मन की कल्पनाओं से परे तुम हो स्थिर ,शाँत ब्रह्म रुप तुम सागर से गहरे,तुम नीले अंबर से भी अंतहीन तुम चैन की बंसी बजाते तुम्ही मुरली मनोहर ज्ञान भी ...