सभ्यता का एक दिन

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नरेन्द्र जीवन के झमेलों से बेफ़िक्र रहता था। लापरवाही उसका सिद्धान्त था। राह-चलते जो मिल गया, ले लिया और चलते बने। सुख मिला, हँस लिए; दुख मिला, सह लिया। पैसे मिल ...

अध्याय

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