315 भाग
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नगर की छत पर विलीन हो रहा पुच्छल तारा, लहरियाँ बिखेरता हुआ। बत्तियाँ धुधियायी हुईं। बर्फीली हवा में भी पसीने से तर-बतर। साँस घुटता हुआ-सा। तभी वह हड़बड़ा कर उठ बैठा। ...