कविताः दिशा

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कविता--दिशा दिशा हीन मैं हुआ, भटक रहा चहुंओर न जाने दिल किसपर अटका, मैं भटका किस छोर न पतंग हैं न डोर छूटे सब बागडोर कहाँ बैठा हूँ मैं खो गया ...

अध्याय

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