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चाॅंद को जब भी देखता तुमको ही उसमें पाता हूॅं बेताबी से हर रात तुम्हारे आने का इंतजार करता हूॅं अपनी पीड़ा किसे सुनाऊं ऑंखों में ऑंसू लेकर खड़ा रहता ...