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ना तो रास्तों का भान था ना ही मंजिलों का ज्ञान था। मुसाफ़िर बन चल निकली हूॅं सच्ची राह पर मंजिल मिलेगी एक दिन इसी चाह पर। भटक जाऊं कहीं ...