स्त्री

1 भाग

93 बार पढा गया

2 पसंद किया गया

"किया मैंने ही अक्सर जब  नाफ़रमानियां उसकी !  छलक जाती है तब आंखों  से मेहरबानियां उसकी !!  मेरे चेहरे पे जब भी फ़िक्र  के आसार पाये हैं ;  बदल देती मेरी ...

×