210 भाग
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* एक एक सन मरमु न कहहीं। समुझि तासु बध चुप करि रहहीं॥ भयउ कोलाहल नगर मझारी। आवा कपि लंका जेहिं जारी॥4॥ भावार्थ:-एक-दूसरे को मर्म (असली बात) नहीं बतलाते, उस (रावण ...