रामचरित मानस

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* सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥ बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥2॥  भावार्थ:-सुंदर (सात्त्वकी) बुद्धि भूमि है, हृदय ही उसमें गहरा स्थान है, वेद-पुराण ...

अध्याय

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