बंदर, बदमाशी और हम इंसान

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“बंदर मामा पहन पजामा,,  ठुमक-ठुमक ससुराल चले”,,,,,                    दोस्तों बचपन में ये कविता स्कूल में पढ़ाई गई थी और फिर इसे याद कराया ...

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