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कविता--सूखा पेड़ कोने में खड़ा वह दरख्त.. आज भी खड़ा उम्मीदों के साथ, कुछ मेरी तरह... कभी तो शाख फूटेगी.. पत्तों से बसंत गुलजार होगा.. लेकिन..! दरख्त भी भला कब जीया ...