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विषय:--"मर्यादा" दिख गया है रूप असली, आज मेरी जिंदगी का ! हम वरण न कर सके , सन्निकट बिखरी खुशी का! कर रहे निंदा परस्पर , पर प्रशंसक बन न पाए! ...