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रचयिता-प्रियंका भूतड़ा शीर्षक-उम्र का दराज कल तक किसी के कपड़े सीले, आज खुद कपड़े फटे पहने, यह उम्र का दराज। कल तक धावक बनकर दौड़ते, आज खुद चल भी नहीं पाते, ...