मुत्मइन

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एक मुट्ठी धूप है अब दुआओं में शामिल, आसमां नहीं पैरों‌ की जमीन चाहिए, हो जाए मयस्सर दो पल का सुकून, नीयत में अपनी इतना यकीन चाहिए। गुनाहों की स्याही में ...

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