1 भाग
232 बार पढा गया
11 पसंद किया गया
न कोई मंज़िल है ना ही कोई दिखाना ! ज़िंदगी का हुआ हूँ मै तो बस मारा ! लूटा कर खुद को एक आँख भी न भाता ! इल्ज़ामों के कटघरे ...