विरह वेदना

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आज फिर चाँद धरा पर अपनी चांदनी उड़ेल रहा है आज फिर वही तारे आकाश में टिमटिमा रहे हैं आज फिर वही ठंडी हवा मेरे जिस्म को छूकर गुजर रही है ...

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