बरसात-वरदान या अभिशाप

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सूखी, उर्वर धरती को ‘सनम’, एक संबल सा दे जाती है छू कर उसके अवतल को ये, बस हरा-भरा कर जाती है।। यूँ तो बरसात है मन-मोहक, मनमोहक इसकी फुहारें हैं ...

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