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कविताःविनती अंधियारा बहुत है घनघोर मंझधार में फँसी है जीवन नैया चहुंओर मन में उठें तरंगें हजार भटकाते मुझे बारंबार प्रभु तुम ही इक सहारा हो मेरी डूबती नैया की तुम ...