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कविता ःशिखर हिमालय के शिखर से निकली गंगा सप्तरूपों से सजकर निकली गंगा अपने तट पर कई धाम बनाती गंगा निर्मल मन मस्तिष्क बनाती गंगा महाभूतेश्वर के शिखर विराजती गंगा पतित ...